भाजपा से दूर होने के लगातार सबूत छोड़ते जा रहे राव इंद्रजीत सिंह

राव इंद्रजीत के खिलाफ ऐसे तमाम सबूत इस बात की गवाही दे रहे हैं की उनका भाजपा से मन भर चुका है जबकि एक भी ऐसा दावा या साक्ष्य सामने नजर नही आ रहा है जिससे लगे की राव भाजपा में लंबे समय तक रहने का इरादा बना चुके हैं। इसकी असल सच्चाई या तो राव का दिल जानता है या भाजपा का दिमाग। मीडिया वही बता रहा है जो नजर आ रहा है।


Pardeep ji logoरणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण

 केंद्र में लगातार तीसरी बार सत्ता में आई भाजपा सरकार में केंद्रीय मंत्री बनते आ रहे राव इंद्रजीत सिंह को आखिर क्या हो गया है। वे लगातार ऐसे सबूत क्यों छोड़ते जा रहे हैं जिससे यह आशंका प्रबल होती जा रही है की वे तीन माह बाद होने जा रहे हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले कहीं भाजपा को राम राम नही कह दें। अगर यहा पर यह  सोचना गलत है तो राव इंद्रजीत सिंह के उन बयानों को कैसे अनदेखा या झूठला दे जिसमें उनकी जीत में भाजपा कहीं भी नजर नही आईं । सिर्फ रोष और गुस्सा जग जाहिर करते रहे। यहां तक की लोकसभा चुनाव के बाद पिछले 10 दिनों में दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नडडा और रोहतक में प्रदेश प्रभारी धमेँद्र प्रधान, सह प्रभारी बिप्लब कुमार देब, केंद्रीय मंत्री मनोहरलाल,  सीएम नायब सैनी व जीते हुए सभी हरियाणा के सांसदों की मौजूदगी में हरियाणा चुनाव को लेकर हुई बेहद अहम मीटिंग में राव का मौजूद नही रहना यह साबित करता है की वे आगे की राजनीति में अलग ही इरादा बना चुके हैं। 23 जून रविवार को रोहतक में विधानसभा चुनाव जीतने के लिए हरियाणा भाजपा का जिला स्तर से लेकर प्रदेश स्तर का संपूर्ण प्रबंधन मौजूद था। मंच के पीछे लगे बैनर पर राव इंद्रजीत की फोटो तक लगी हुई थी लेकिन  किसी भी नेता ने उनका नाम लेना तो दूर यह बताने में कोई दिलचस्पी नही  दिखाई की राव इंद्रजीत किस कारण से इस आयोजन में नहीं पहुंच पाए। राव के कार्यालयों से सिर्फ इतना बताया गया की वे बाहर है।

राव के भाजपा से नाराज होने के कारण भी सार्वजनिक है। वे इस बार चुनाव बड़ी मुश्किल से जीत पाए। चुनाव प्रचार में भाजपा संगठन उनके साथ कही भी नजर नही आया। इसलिए रजल्ट आते ही जीत का पूरा श्रेय उन्होंने अपने समर्थकों को दे दिया। भाजपा को पूरी तरह से बहुमत नही मिलने और विधानसभा चुनाव में दक्षिण हरियाणा से भाजपा को मजबूत करने की रणनीति के तहत हाईकमान राव को केंद्र में बड़ा ओहदा देगी। इसकी पूरी संभावना थी जो उस खत्म दूर हो गई जब राव को उसी पद पर रखा गया जो पिछले 10 सालों से उनके पास था। जबकि इस बार  कैबिनेट में ऐसे नेताओं को लिया गया जिनकी उम्र ही राव इंद्रजीत सिंह की राजनीति यात्रा से बहुत कम थी। राव पिछले 50 सालों से राजनीति में हैं जिसमें वे छह बार सांसद और तीन बार विधायक रह चुके हैं। हरियाणा में उनके प्रोफाइल का कोई बड़ा नेता नही है। इसके बावजूद भाजपा ने उनके तौर तरीकों को एक दायरे में लाकर यह जता दिया है की संगठन से बड़ा कोई नही है। उनकी नजर में राव की राजनीति 2013 में पार्टी ज्वाइन करने के बाद महज 10 साल पुरानी है।

 बेटी राजनीति में स्थापित हो जाती तो अभी तक उलटफेर कर देते

राव इंद्रजीत की राजनीति का धर्म संकट बेटी आरती राव का राजनीति में अभी तक स्थापित नही होना है। पिछले 10 साल भाजपा के भरोसे टिकट में गुजर गए। इस बार भी तस्वीर साफ नही है। भाजपा के भरोसे वे किसी सूरत में नही रहेंगे इसलिए एलान भी कर चुके हैँ की आरती हर हाल में चुनावी मैदान में उतरेगी चाहे पार्टी टिकट दे या नही। अब सवाल उठता है की भाजपा राव के कहने पर आरती को टिकट देती हैं तो पार्टी के भीतर भूचाल आ जाएगा। परिवारवाद के खिलाफ भाजपा खुद अपने एजेंडे में घिर जाएगी। ऐसे में अनेक नेताओं की संताने भी दावेदारी में आ जाएगी। जिसे कंट्रोल कर पाना आसान नही होगा।

 राव का इतिहास हमेशा पार्टी और सत्ता में रहकर बगावत का रहा है

ऐसा नही है की राव इंद्रजीत सिंह भाजपा में आने के बाद ही असहज हुए हैं। 2013 से पहले कांग्रेस में रहकर उनकी सीएम रहे भूपेंद्र हुडडा से नहीं बनी और टकराव होता रहा। इससे पहले जाए तो मुख्यमंत्री रहे भजनलाल से भी राम राम ठीक ठाक नही थी। यहा की जनता भी हैरान है की आखिर यहां से लगातार जीतने और सत्ता में रहने के बावजूद भी राव की आखिर किस पार्टी और नेता से क्यों नही बनी। इसी वजह से यह क्षेत्र विकास में भी पिछड़ता चला गया।  

 भाजपा में राव की खिलाफत सबसे ज्यादा

 देखा जाए तो मौजूदा स्थिति में हरियाणा में राव इंद्रजीत एकदम अलग थलग पड़े हुए हैं। सीएम के बाद केंद्रीय मंत्री बने मनोहरलाल से उनकी बोलचाल में मिठास गायब रही। मौजूदा सीएम नायब सैनी से भी इतने बेहतर संबंध नही है की जिस पर वे मुस्करा दे। भाजपा के ताकतवर नेता केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव व डॉ. सुधा यादव को अपना प्रतिद्धंदी मानकर पहले से ही दूरिया बनाकर चल रहे हैं। गुरुग्राम से लेकर नांगल चौधरी तक असरदार नजर आ रहे नेता भी उनके धुर विरोधी है जिसमें पूर्व मंत्री राव नरबीर सिंह, राज्य सिंचाई मंत्री डॉ. अभय यादव, पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास, पूर्व चेयरमैन अरविंद यादव, पटोदी विधायक सत्यप्रकाश जरावता विशेष तौर से शामिल है। अन्य संगठन के पदाधिकारियों की संख्या अलग है। चुनाव में अगर विरोधियों को टिकट मिली तो राव हर हालत में उन्हें हराने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। यह उनकी राजनीति का तौर तरीका रहा है की वे अपने विरोधियों को खत्म करने के लिए तमाम मर्यादाओं को पार कर जाते हैं। यही उनकी सफल राजनीति का मजबूत आधार भी रहा है और इसी वजह से वे बेधड़क नेता के तौर पर जाने जाते हैं। कुल मिलाकर राव इंद्रजीत के खिलाफ ऐसे तमाम सबूत इस बात की गवाही दे रहे हैं की उनका भाजपा से मन भर चुका है जबकि एक भी ऐसा दावा या साक्ष्य सामने नजर नही आ रहा है जिससे लगे की राव भाजपा में लंबे समय तक रहने का इरादा बना चुके हैं। इसकी असल सच्चाई या तो राव का दिल जानता है या भाजपा का दिमाग। मीडिया वही बता रहा है जो नजर आ रहा है।